डिवीजन बेंच ने कहा कि रियल एस्टेट विनियमन और विकास अधिनियम 2016 (रेरा) की धारा 71 (1) के तहत न्याय निर्णायक प्राधिकारी अकेले मुआवजे का फैसला कर सकता है। जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय एस अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने कहा कि फ्लैट-मकान बुक कराने के बाद कई किस्त देने वाले लोग प्रोजेक्ट के पूरा होने का इंतजार करते हुए मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकते।
By Yogeshwar Sharma
Publish Date: Mon, 10 Jun 2024 01:29:00 AM (IST)
Up to date Date: Mon, 10 Jun 2024 01:29:00 AM (IST)
नईदुनिया न्यूज, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसला में कहा है कि रेरा के दायरे में वे प्रोजेक्ट भी आएंगे जिन्होंने एक्ट से पहले पूर्णता प्रमाण पत्र नहीं लिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि एक्ट से पहले के प्रोजेक्ट पर भी रेरा के प्रविधान लागू होंगे। कोर्ट ने गोल्ड ब्रिक्स और तनु कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया है।
डिवीजन बेंच ने कहा कि रियल एस्टेट विनियमन और विकास अधिनियम 2016 (रेरा) की धारा 71 (1) के तहत न्याय निर्णायक प्राधिकारी अकेले मुआवजे का फैसला कर सकता है। जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय एस अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने कहा कि फ्लैट-मकान बुक कराने के बाद कई किस्त देने वाले लोग प्रोजेक्ट के पूरा होने का इंतजार करते हुए मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकते।
कंपनी के तर्कों से जताई असहमति
कंपनियों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर तर्क दिया कि रेरा के प्राधिकारी ने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन करते हुए आदेश जारी किया है। पूरा भुगतान किए बिना रेरा में मामला दायर नहीं किया जा सकता। इन तर्कों के साथ याचिकाकर्ता कंपनियों ने रेरा के आदेश को निरस्त करने की मांग की है।
कोर्ट ने कहा कि मकान बनाने का रास्ता देख रहे लोगों से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे प्रोजेक्ट के नाकाम रहने तक निष्क्रिय रहेंगे। प्रमोटर कंपनी ने अपना काम करने के बजाय तर्क दिया है कि रेरा के पास इस तरह का फैसला देने का अधिकार नहीं है। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि रेरा का प्रविधान ऐसे प्रोजेक्ट पर भी लागू होंगे जो एक्ट लागू होने से पहले शुरू किए गए थे और जिसमें पूर्णता प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया है।
यह है मामला
अतीत अग्रवाल, नंदकिशोर पटेल व अन्य ने रायपुर में कंस्ट्रक्शन कंपनियों में फ्लैट बुक कराया था। कुछ लोगों ने प्लाट लिए, जहां कंपनी को मकान बनाकर देना था। कुछ ने एग्रीमेंट के बाद कई किस्त का और कुछ ने पूरा भुगतान भी कर दिया है। लोगों से एडवांस राशि लेने के बाद भी कंस्ट्रक्शन कंपनी ने काम ही प्रारंभ नहीं किया। साथ ही आवश्यक सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं कराई।
जो लोग मकान बनवाना चाहते थे, उनसे विकास शुल्क की मांग की। इसके बाद प्रभावित लोगों ने रेरा के तहत कार्रवाई के लिए प्राधिकरण में आवेदन दिया। न्यायाधिकरण ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद रेरा ने कंपनी को लोगों से ली गई रकम को ब्याज सहित वापस लौटाने के निर्देश दिए थे।
रेरा ने इसके लिए दो महीने की समय सीमा निर्धारित कर दी थी। राशि लौटाने के बाद कंस्ट्रक्शन कंपनियों ने रेरा के फैसले को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। डिवीजन बेंच ने सुनवाई के बाद रेरा के फैसले को सही ठहराते हुए कंस्ट्रक्शन कंपनियों की याचिका खारिज कर दी है।