
महाकुंभ 2025 की शुरुआत 13 जनवरी पौष पूर्णिमा के दिन से होने वाली है, जिसमें सभी अखाड़ों के साधु संत यहां स्नान करेंगे और पवित्र नदी में स्नान करेंगे। साधुओं के उद्यम समूह को एरिना कहा जाता है।

आम तौर पर एरिना में उस स्थान को कहा जाता है जहां रेसलर रेसलर होते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुंभ में साधु-संतों के समूह को क्यों कहा जाता है। बताइये कि साधु-संतों के समूह को एरिना नाम आदि पूर्वजों ने दिया है।

कुंभ के ये आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संरक्षक के प्रतीक माने जाते हैं। शैव, वैष्णव और नाथ पंथ के संतों के सिद्धांत मुख्य रूप से प्राप्त कुल 13 बौद्ध हैं। इनमें शैव संत संप्रदाय के 7, बैरागी वैष्णव संप्रदाय के 3 और नाथ संप्रदाय के 3 शामिल हैं।

ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास शिष्य हैं कि, शिष्यों का इतिहास या शिष्य पुराना है। सिद्धांत यह है कि प्राचीन काल में हिंदू धर्म की रक्षा के लिए आदि पुरावशेषों ने शस्त्र विद्या में साधुओं के संगठन तैयार किए थे, जिसे एरिना का नाम दिया गया था।

कुम्भ में बौद्धों की उपस्थिति सांस्कृतिक विरासत को बनाये रखने में अहम भूमिका निभाती है। पवित्र आश्रमों, ग्रंथों और संप्रदायों को संरक्षित कर इन्हें भावी पीढ़ी तक पहुँचाते हैं। वहीं नागा साधुओं जैसे बौद्ध धर्म से जुड़े साधू संतों की भी वकालत की जाती है, जिससे कि पवित्र स्थानों की रक्षा हो सके।

महाकुंभ 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी 2025 तक चलेगा। इस दौरान कई विशेष तिथियां पड़ेंगी, जिसमें सहायक गंगा स्नान के लिए शुभ माना जाता है। चतुर्थ शुभ तिथियों पर कुंभ में साधु-संत भी स्नान करते हैं, जिसके कारण इसे शाही स्नान कहा जाता है।
प्रकाशित: 13 दिसंबर 2024 09:24 अपराह्न (IST)