Baloch Hanged In Iran: ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में बलूच जातीय समूह के साथ हो रहा संगठित मानवाधिकार उल्लंघन अब दुनिया के सामने उजागर हो चुके हैं. सिर्फ अप्रैल महीने में 33 बलूच कैदियों को फांसी पर लटकाया गया, जिनमें से अधिकांश को बिना पारदर्शी प्रक्रिया के सजा दी गई.
ईरान ने 33 बलूच कैदियों को 10 अलग-अलग जेलों में फांसी दी गई. इनमें से 24 पर ड्रग्स से जुड़े आरोप, 4 पर राजनीतिक अपराध के मामले हैं. कई फांसी के मामलों में तो परिवारों को सूचना तक नहीं दी गई. हैरानी की बात यह है कि 33 के अलावा 85 और बलूच कैदी को फांसी पर लटकाने की तैयारी की जा रही है. ये सभी के सभी जाहिदान जेल में बंद है. यह घटनाक्रम न केवल ईरान की न्यायिक प्रणाली पर प्रश्नचिह्न लगाता है, बल्कि इसे एक सांप्रदायिक व राजनीतिक दमन भी मानता है.
क्या यह न्याय है या सजा देने की राजनीति?
बलूच एक्टिविस्ट्स कैंपेन की रिपोर्ट के अनुसार, इन फांसी के पीछे का उद्देश्य न्याय से अधिक राजनीतिक दबाव और दमन प्रतीत होता है. आरोप है कि इन लोगों को राजनीतिक रूप से प्रेरित आरोपों के तहत फंसाया गया. मानवाधिकार संगठन का कहना है कि बलूच कैदियों को पारदर्शी कानूनी प्रक्रिया के बिना फांसी देना अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का उल्लंघन है.
ईरान में मौत की सजा देने से जुड़ी जरूरी बात
ईरान में अब तक 33 बलूच लोगों को मौत की सजा दे दी गई है. इस संबंध में कई ऐसी बातें है, जो काफी चौंकाने वाली है. अभी तक जितने लोगों को फांसी दी गई है, उन सभी को बिना किसी सबूत के ही सजा दे दी गई. कैदियों को वकील नहीं दिया गया. फास्ट-ट्रैक सुनवाई में मौत की सजा सुना दी गई. कैदियों के परिवार वालों को भी जानकारी नहीं दी गई.
बलूच कैदियों को कहां रखता ईरान?
ईरान बलूच कैदियों को जाहिदान जेल में रखता है. यहां देश के अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा बलूच कैदी रहते हैं. मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक जाहिदान जेल की गिनती सबसे बदनाम जेलों में होती है. यहां कैदियों को शारीरिक व मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. पर्याप्त चिकित्सा सुविधा नहीं मिलती है. जबरन उसने अपराध कबूलने के लिए मजबूर किया जाता है. यह जेल बलूच दमन के प्रतीक के रूप में उभर रही है.
ईरान में बलूच समुदाय का इतिहास,
ईरान की कुल आबादी का केवल 5% बलूच हैं, लेकिन फांसी की सजा पाने वालों में इनकी संख्या 10% से अधिक है. इससे साफ है कि यह सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि संवैधानिक अन्याय की कहानी है. ईरान में बलूच आर्थिक रूप से कमजोर है. उन्हें सरकारी नौकरियों में भर्ती नहीं दिया जाता है. बलूचों को धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. बता दें कि बलूच सुन्नी हैं, जबकि ईरान शिया-बहुल है.